सद्गुरु धन पर विचार: आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में पैसा कमाना लगभग हर किसी का प्राथमिक लक्ष्य बन गया है। लेकिन सद्गुरु, जो एक प्रख्यात योगी और आध्यात्मिक गुरु हैं, हमें चेतावनी देते हैं कि यदि हम धन को जीवन का केंद्र बना लेंगे, तो हम जीवन के वास्तविक अर्थ को खो बैठेंगे।

धन – एक उपकरण, ट्रॉफी नहीं
सद्गुरु कहते हैं, “अगर पैसा आपका लक्ष्य बन जाता है, तो आप पूरी बात ही भूल जाते हैं।” धन जीवन जीने का एक साधन है, इसका उद्देश्य नहीं। जब पैसा ड्राइवर की सीट पर बैठ जाता है, तो संतुष्टि पीछे छूट जाती है।
इसे अपनी जेब में रखो, दिमाग में नहीं
धन से जुड़ी एक सरल पर गहरी बात सद्गुरु कहते हैं: “इसे अपनी जेब में रखो, अपने सिर में नहीं।” जैसे ही पैसा आपके दिमाग पर हावी होता है, यह साधन नहीं बल्कि बोझ बन जाता है। आराम अच्छा है, लेकिन लालसा और जुनून जीवन से शांति छीन लेते हैं।
धन का असली उद्देश्य
धन दिखावे के लिए नहीं है। सद्गुरु स्पष्ट करते हैं कि इसका उद्देश्य जीवन को सहज और आनंददायक बनाना है। अगर आप केवल पैसों के पीछे भागते हैं, तो हो सकता है आप अमीर बन जाएं, लेकिन अर्थ और संतोष से दिवालिया हो जाएं।
बाहर से अमीर, भीतर से गरीब?
कितना भी कमा लें, अगर आप अंदर से चिंतित, बेचैन या खाली महसूस करते हैं – तो वह धन किस काम का? सद्गुरु हमें याद दिलाते हैं: “विलासिता से प्यार, शांति या नींद नहीं खरीदी जा सकती।”
मूल्य पहले, पैसा बाद में
पैसे के पीछे मत भागो – सद्गुरु कहते हैं, “मूल्य पैदा करो, समाधान दो, जीवन को स्पर्श करो – पैसा अपने आप आएगा।” जब आप कुछ वास्तविक करते हैं, तब धन उसका स्वाभाविक परिणाम बनता है।
तुलना का जाल
कभी आपने सोचा है कि आपके सपने वास्तव में आपके हैं या पड़ोसी की जीवनशैली से प्रेरित? सद्गुरु चेतावनी देते हैं कि दूसरों को प्रभावित करने के लिए कमाया गया धन आपको कभी संतोष नहीं देगा। यह एक ऐसी दौड़ है जिसका कोई अंत नहीं।
धन: शक्ति या बंधन?
धन आपको स्वतंत्रता दे, यह इसका उद्देश्य है – न कि आपको एक अनंत दौड़ में बाँध देना। सद्गुरु कहते हैं, “असली धन अपनी शर्तों पर जीने की क्षमता है, न कि लगातार उन्हें ऊँचा करते जाना।”
समृद्ध लेकिन खाली
सद्गुरु पश्चिम की ओर इशारा करते हैं जहाँ अत्यधिक धन-संपत्ति के बावजूद अवसाद और आत्महत्या की दरें बढ़ रही हैं। वह कहते हैं, “आध्यात्मिक गहराई के बिना भौतिक सफलता केवल भीतर की टूटन को बढ़ाती है।”
पैसा: तटस्थ ऊर्जा
अंततः, पैसा बुरा नहीं है। यह एक तटस्थ ऊर्जा है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसका उपयोग कैसे करते हैं। सही दिशा में लगाया जाए तो यह जीवन को समृद्ध बनाता है; दुरुपयोग करने पर यह विनाश भी ला सकता है।
निष्कर्ष: धन एक ज़रूरी साधन है, लेकिन जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं। सद्गुरु की शिक्षाएं हमें याद दिलाती हैं कि संतुलन बनाए रखना ही असली समृद्धि है – जहाँ धन हमारी सेवा में हो, न कि हम उसके गुलाम बनें।