
डॉ.भीमराव अम्बेडकर: जानिए कैसे उन्होंने RBI की नींव रखी!”
डॉ.भीमराव अम्बेडकर के आर्थिक योगदान और विशेष रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की स्थापना में उनकी भूमिका को बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। इसे एक छोटे लेख या पोस्ट के रूप में ढालते हुए थोड़ी और स्पष्टता और धार दी जा सकती है। नीचे इसका एक संशोधित और प्रभावशाली संस्करण है
1.डॉ.भीमराव अम्बेडकर का परिचय
ज़्यादातर लोग डॉ. अम्बेडकर को संविधान निर्माता और सामाजिक न्याय के योद्धा के रूप में जानते हैं।
परंतु उनका योगदान केवल सामाजिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था।
वे एक दूरदर्शी अर्थशास्त्री भी थे।
2.डॉ.भीमराव अम्बेडकर RBI के अज्ञात मूर्तिकार
जब हम डॉ. अम्बेडकर को याद करते हैं, तो ज़्यादातर लोग उन्हें संविधान निर्माता और सामाजिक न्याय के महान योद्धा के रूप में जानते हैं। परंतु उनका योगदान केवल सामाजिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था। वे एक दूरदर्शी अर्थशास्त्री भी थे, जिनकी आर्थिक सोच ने भारत की मौद्रिक नीतियों को गहराई से प्रभावित किया।
3.1923 में लिखी गई उनकी पुस्तक “रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान”
में उन्होंने ब्रिटिश भारत की गोल्ड स्टैंडर्ड आधारित मौद्रिक प्रणाली की सीमाओं का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने प्रबंधित मुद्रा प्रणाली की वकालत की, जो आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए अधिक उपयुक्त थी।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत की आर्थिक अस्थिरता ने इस विषय को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। डॉ. अम्बेडकर की सलाहों के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने हिल्टन यंग कमीशन (Indian Currency and Finance Commission) का गठन किया, जिसकी रिपोर्ट ने 1935 में भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
1942 से 1946 तक वे वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य रहे, जहाँ उनकी आर्थिक समझ और नीतिगत सुझावों ने RBI की कार्यप्रणाली को दिशा दी।
डॉ. अम्बेडकर एक “अज्ञात मूर्तिकार” की तरह थे, जिन्होंने भारत की आर्थिक नींव को गढ़ा। उनकी सोच ने केवल वर्तमान की समस्याओं को हल नहीं किया, बल्कि आने वाले स्वतंत्र भारत के आर्थिक आत्मनिर्भरता की नींव रखी।
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