पवन कल्याण: मैंने हिंदी का कभी विरोध नहीं किया

पवन कल्याण: मैंने हिंदी का कभी विरोध नहीं किया

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पवन कल्याण: किसी भाषा को जबरन थोपना या किसी भाषा का आँख मूंदकर विरोध करना एकता के उद्देश्य मदद नहीं करते

पवन कल्याण सर ने कहा, “किसी भाषा को जबरन थोपना या किसी भाषा का आँख मूंदकर विरोध करना, दोनों ही हमारे भारत की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकता के उद्देश्य को प्राप्त करने में मदद नहीं करते हैं। मैंने कभी भी एक भाषा के रूप में हिंदी का विरोध नहीं किया। मैंने केवल इसे अनिवार्य बनाने का विरोध किया था। जब एनईपी 2020 स्वयं हिंदी को लागू नहीं करता है, तो इसके लागू होने के बारे में झूठी बातें फैलाना जनता को गुमराह करने के अलावा और कुछ नहीं है।” मैं भाषा विरोध नहीं किया

1.पवन कल्याण सर ने क्या कहा।

पवन कल्याण सर ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत छात्र विदेशी भाषा के साथ-साथ कोई भी दो भारतीय भाषाओं का अध्ययन करना चुन सकते हैं।

पवन कल्याण सर ने कहा, “अगर वे हिंदी नहीं पढ़ना चाहते हैं, तो वे तेलुगु, तमिल, मलयालम, कन्नड़, मराठी, संस्कृत, गुजराती, असमिया, कश्मीरी, उड़िया, बंगाली, पंजाबी, सिंधी, बोडो, डोगरी, कोंकणी, मैथिली, मैतेई, नेपाली, संताली, उर्दू या कोई अन्य भारतीय भाषा भी चुन सकते हैं।”

पवन कल्याण सर का बयान तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बयान के जवाब में आया है, जिन्होंने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है और एनईपी के तहत त्रिभाषा फार्मूले को लागू करने से इनकार कर दिया है।

इससे पहले शुक्रवार को भी कल्याण ने तमिलनाडु के नेताओं की आलोचना की थी और सवाल किया था कि वे आर्थिक लाभ के लिए तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करने की अनुमति क्यों देते हैं, जबकि वे भाषा का विरोध करते हैं। काकीनाडा जिले में अपनी पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा, “तमिलनाडु में लोग हिंदी थोपे जाने का विरोध करते हैं। इससे मुझे आश्चर्य होता है कि क्या वे हिंदी नहीं चाहते हैं,

2.इसके पीछे क्या वजह है?”

पवन कल्याण सर राष्ट्रीय एकता के लिए कई भाषाओं के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “भारत को तमिल सहित कई भाषाओं की जरूरत है, न कि सिर्फ दो की। हमें भाषाई विविधता को अपनाना चाहिए – न सिर्फ अपने देश की अखंडता को बनाए रखने के लिए बल्कि अपने लोगों के बीच प्रेम और एकता को बढ़ावा देने के लिए भी।”

3.डीएमके की प्रतिक्रिया

डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन ने कल्याण के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तमिलनाडु में हमेशा दो भाषा नीति का पालन किया गया है, तथा स्कूलों में तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है।

पवन कल्याण सर ने बोला कि, ‘‘हम 1938 से हिंदी का विरोध कर रहे हैं।पवन कल्याण सर राज्य विधानसभा में कानून पारित किया कि तमिलनाडु हमेशा दो-भाषा फार्मूले का पालन करेगा, क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र के विशेषज्ञों की सलाह और सुझाव के कारण ऐसा हुआ है, अभिनेताओं की नहीं। यह विधेयक 1968 में ही पारित हो गया था, जब पवन कल्याण का जन्म भी नहीं हुआ था। उन्हें तमिलनाडु की राजनीति का पता नहीं है,”

अभिनेता प्रकाश राज ने भी टिप्पणी करते हुए कहा, “यह कहना कि ‘अपनी हिंदी हम पर मत थोपिए’, दूसरी भाषा से नफरत करने के समान नहीं है।यह हमारी मातृभाषा और हमारी सांस्कृतिक पहचान को गर्व के साथ सुरक्षित रखने के बारे में है।”

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने 12 मार्च को तिरुवल्लूर में एक रैली में बोलते हुए एनईपी की आलोचना की और कहा कि इसका उद्देश्य शिक्षा नहीं बल्कि यह हमारी मातृभाषा और हमारी सांस्कृतिक पहचान को गर्व के साथ सुरक्षित रखने के बारे में है।”

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने 12 मार्च को तिरुवल्लूर में एक रैली में बोलते हुए एनईपी की आलोचना की और कहा कि इसका उद्देश्य शिक्षा नहीं बल्कि हिंदी को बढ़ावा देना है। स्टालिन ने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा नीति नहीं है; यह भगवा नीति है। यह नीति भारत के विकास के लिए नहीं बल्कि हिंदी के विकास के लिए बनाई गई है। हम इस नीति का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह तमिलनाडु की शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से नष्ट कर देगी।”

4.मामला क्या है?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) पर बहस इसके त्रि-भाषा फॉर्मूले पर केंद्रित है, जिसके बारे में तमिलनाडु को डर है कि इससे राज्य में हिंदी थोपी जा सकती है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तर्क दिया है कि नीति क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी को प्राथमिकता देती है, जिससे राज्य की भाषाई विविधता और स्वायत्तता प्रभावित होती है।

हालाँकि, केंद्र सरकार का कहना है कि एनईपी बहुभाषावाद को बढ़ावा देती है और भाषा शिक्षा में लचीलापन प्रदान करती है।केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हिंदी थोपे जाने के दावों का खंडन करते हुए कहा कि नीति के तहत राज्यों को अपनी पसंदीदा भाषा चुनने की स्वतंत्रता है।

हालाँकि, केंद्र सरकार का कहना है कि एनईपी बहुभाषावाद को बढ़ावा देती है और भाषा शिक्षा में लचीलापन प्रदान करती है।केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हिंदी थोपे जाने के दावों का खंडन करते हुए कहा कि नीति के तहत राज्यों को अपनी पसंदीदा भाषा चुनने की स्वतंत्रता है।

यह विवाद तब और बढ़ गया जब केंद्र ने तमिलनाडु की समग्र शिक्षा योजना के लिए आवंटित 2,152 करोड़ रुपये को यह कहते हुए रोक दिया कि राज्य ने एनईपी को लागू करने से इनकार कर दिया है।

तमिलनाडु ने ऐतिहासिक रूप से त्रिभाषा फार्मूले का विरोध किया है, तथा इसे हिंदी को लागू करने की दिशा में एक कदम माना है, जबकि केंद्र सरकार का तर्क है कि यह नीति छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों तक पहुंचने में मदद करती है।

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